हवा में तैरती ,
कभी नदी के किनारे ,
तो कभी आसमान के तले ...
एक मासूम सी हंसी छुपाये ,
जो आगे बढ़ रही है ये हर गम को भुलाए ...
कभी बातें करने से डरती है ,
कभी लड़खड़ा के चलती है ,
तो कभी थर थराके फिसलती है ...
न जाने क्यों छुपना चाहती है ,
न जाने क्यों थक के रुक सी जाती है ...
सूरज से बचना चाहती है ,
तो कभी अंधेरे में भी डराती है ...
बिन कहे भी तू मुझको ,
एक आराम का एहसास दे जाती है ...
धूप लगे जो मुझको ,
जलने से मुझे बचाती है ...
शाम ढलते ही तू मुझसे ,
न जाने क्यों मोह छुड़ाती है ...
तू छाओं है जो हम सबकी ,
तो रूठ के क्यों चली जाती है ...
तू छाओं है जो हम सबकी ,
तो दोस्त बनाके क्यों रुलाती है ...
This post is written for the #HalfMarathon blogging challenge at #Blogchatter DailyChatter. Suggestions and feedback are most welcome.
अच्छी कविता ! बधाइ
ReplyDeletehttp://utpalkant.blogspot.in/
http://kantutpal.blogspot.in/
Thank you so much for your kind words,Sir :)
DeleteNice one!
ReplyDeleteThank you so much :)
DeleteSuch a beautiful composition, Saumy! Keep writing :)
ReplyDeleteThank you so much! So glad that you liked it :)
DeleteVery nice.
ReplyDeleteThank you so much Sir! 😊
DeleteLovely..nice composition :)
ReplyDeleteThanku so much! So glad that you liked it 😊
DeleteAwesome Saumy..
ReplyDeleteFirst time read your poetry, impressed bro.
Keep it up.