धुँआ-धुँआ है ये समां …
धुँआ-धुँआ है हर ज़र्रा ....
आज इस धुएँ में हमको जी लेने दे …
गमो के ज़हर को आज पी लेने दे ....
कहता तो है ये दिल भी बहुत ,
दूर तलक जाने के लिए …
ज़िक्र करने से न बहल पाएगा …
ये ज़ालिम दिल न समझ पाएगा …
ओढ़ी हुई रज़ाई में ,
ये बचपन भी सिमट सा जाएगा ....
ये धुँआ तो है बनावटी
बातों-बातों में खत्म हो जाएगा ....
गुमसुम न रह जाना तुम कहीं ....
क्यूँकि ये किस्सा दूर तलक जाएगा …