एक परिंदा आज़ादी की तलाश में
कभी गिरते कभी संभलते
कभी पिंजरे से निकलने के प्रयास में
मेहनत के रंग दिखलाता है
उड़ना चाहता है वो खुले आसमान के तले
पर फिर भी उड़ान से घबराता है
पँख समेटके कभी निराशा से उसका मन भर जाता है
पर फिर भी कोशिशों से फिर वो साहस दिखलाता है
डरता है की न खो दे वो ये ज़िन्दगी
पर फिर भी अपने दिल को समझाता है
हार के पथ पे चलने से
वो हमेशा जी छुड़ाता है
आज़ादी की राह में बस
अपने मन को ढांढस बंधवाता है
और कोशिशों के पथ पर
जीत का बिगुल बजाता है
बस उड़ने की चाह को लिए
अपना सपना सच कराता है
खुले आसमान के तले
बस उड़ा चला जाता है …
बस उड़ा चला जाता है …