Thursday 10 April 2014

आँखों की मासूमियत...



आंसू बनके जो गिरे थे वो मोती ,
आँखों की मासूमियत से थे वो परे... 
शिकायतें बहुत थी मगर ,
अपने गमो से हम थे डरे.... 
काश की ऐसा होता,
और खो जाते हम सपनो में.… 
सुकून से हंस लेते हम ,
दो पल के लिए ही सही.… 
बैरी तो बनना ही था,
अँधेरा तो छाना ही था… 
रात के सन्नाटे में,
डर के ऊपर काबू पाना ही था.… 
उम्मीद के चादर ओढ़े हुए
बस एक सपना सजाना था.… 
खुशियों से भरी ओझल आँखों में,
बस मासूमियत को बयां कराना था.…