Tuesday, 18 November 2014

तन्हाई की चादर...

 
तन्हाई की चादर लपेटे हुए ,
अकेले-अकेले से  क्यों लग रहे हो आज  .... 
सर्द हवाओं से डरते थे  तुम कभी ,
आज उसी फ़िज़ा में घुम हो तुम कहीं  .... 
क्या है इस मन की उलझन  ,
जो नम आँखों में दिख रही है  … 
सहर होने को है ,
पर फिर भी अँधेरा क्यों है आज  … 
जाने किस गली को जा रहे हो ,
आज तुम बहुत बेबस नज़र आ रहे हो  …
आज तुम बहुत बेबस नज़र आ रहे हो  …

Tuesday, 28 October 2014

Dhua-dhua sa ye jahan !


धुँआ-धुँआ है ये समां  … 
धुँआ-धुँआ है हर ज़र्रा  .... 
आज इस धुएँ में हमको जी लेने दे … 
गमो के ज़हर को आज पी लेने दे  .... 
कहता तो है ये दिल भी बहुत ,
दूर तलक जाने के लिए  … 
ज़िक्र करने से न बहल पाएगा  … 
ये ज़ालिम दिल न समझ पाएगा  … 
ओढ़ी हुई रज़ाई में ,
ये बचपन भी सिमट सा जाएगा  .... 
ये धुँआ तो है बनावटी 
बातों-बातों में खत्म हो जाएगा  .... 
गुमसुम न रह जाना तुम कहीं  .... 
क्यूँकि ये किस्सा दूर तलक जाएगा  …

Tuesday, 7 October 2014

DiL ChAhTa HaI !



तेरी इन आँखों में डूबने को दिल चाहता है  ....
वक़्त न निकल जाए ,
इस समुन्दर में बहने को दिल चाहता है  …
रूह से निकली आवाज़ की सुने तो ,
ख्वाबों को जीने का दिल चाहता है  .... 
कमज़ोरी को गले लगाये तो ,
शोरगुल में भी सन्नाटा सा छा जाता है   …
अजब सा जूनून है इस तनहा मन में ,
अजब सा है ये एहसास   ....
उलझन में फसा हुआ हूँ में एक मुसाफिर  ....
कोई राह दिखाए तो ,
प्यार करने को भी दिल चाहता है   …

Thursday, 3 July 2014

Tanha dil..!



गमो को छोड़ बहुत दूर जा रहा हूँ ,
वक़्त को छोड़ बहुत दूर जा रहा हूँ  ..
इस मासूम से पल में न जाने किस से घबरा रहा हूँ  ,
दर-दर भटक के न जाने किस को समझा रहा हूँ  ..
तन्हाई से डरता था में कभी ,
कभी खुदसे घबराता था  …
बारिश में भीगते-भीगते ,
बस अकेला चलता जाता था  … 
वक़्त ने ऐसी करवट ली ,
न जाने कितने गम दे गयी  …  
एक आस थी मन में जो बसी ,
बिखर गयी दिल की हर ख़ुशी  … 
रात हो या दिन , बस एक ख्याल आता है, 
सपनो में ऐ दोस्त सचाई से रूबरू क्यों नही कराता है  .... 

Thursday, 10 April 2014

आँखों की मासूमियत...



आंसू बनके जो गिरे थे वो मोती ,
आँखों की मासूमियत से थे वो परे... 
शिकायतें बहुत थी मगर ,
अपने गमो से हम थे डरे.... 
काश की ऐसा होता,
और खो जाते हम सपनो में.… 
सुकून से हंस लेते हम ,
दो पल के लिए ही सही.… 
बैरी तो बनना ही था,
अँधेरा तो छाना ही था… 
रात के सन्नाटे में,
डर के ऊपर काबू पाना ही था.… 
उम्मीद के चादर ओढ़े हुए
बस एक सपना सजाना था.… 
खुशियों से भरी ओझल आँखों में,
बस मासूमियत को बयां कराना था.…