तन्हाई की चादर लपेटे हुए ,
अकेले-अकेले से क्यों लग रहे हो आज ....
सर्द हवाओं से डरते थे तुम कभी ,
आज उसी फ़िज़ा में घुम हो तुम कहीं ....
क्या है इस मन की उलझन ,
जो नम आँखों में दिख रही है …
सहर होने को है ,
पर फिर भी अँधेरा क्यों है आज …
जाने किस गली को जा रहे हो ,
आज तुम बहुत बेबस नज़र आ रहे हो …
आज तुम बहुत बेबस नज़र आ रहे हो …