Tuesday 5 April 2016

माँ के आँचल में ...



 तेरी यादों में जो तन्हा बैठा हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...
तेरे आंचल में जो छुपना चाहता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...

हर घड़ी जो तेरे साये का इंतज़ार करता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...
तेरे प्यार के एहसास को जो भूल रहा हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...

दिल की एक बात को बयां करना चाहता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...
घर के हर कोने में तुझे खोजता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...

हर शाम तेरी ही याद में समय थमता है ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज  ...
अय माँ तेरे पास रहने का खयाल भी रहता है ,
तो लगता है जैसे एक मासूम सी छाओं में सिमटा हुआ रहता हूँ आज  ...
तेरे दुलार को अभी भी तरसता हूँ ,
तो लगता है जैसे दिल से अभी भी बच्चा हूँ मैँ आज ...



2 comments:

  1. Very beautiful.I can feel the emotions coming out from the poem.

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    1. Thanku so much for your kind words, Pranju! So glad that you liked it :)

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