तेरी यादों में जो तन्हा बैठा हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
तेरे आंचल में जो छुपना चाहता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
हर घड़ी जो तेरे साये का इंतज़ार करता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
तेरे प्यार के एहसास को जो भूल रहा हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
दिल की एक बात को बयां करना चाहता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
घर के हर कोने में तुझे खोजता हूँ ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
हर शाम तेरी ही याद में समय थमता है ,
तो लगता है जैसे कुछ कम सा है आज ...
अय माँ तेरे पास रहने का खयाल भी रहता है ,
तो लगता है जैसे एक मासूम सी छाओं में सिमटा हुआ रहता हूँ आज ...
तेरे दुलार को अभी भी तरसता हूँ ,
तो लगता है जैसे दिल से अभी भी बच्चा हूँ मैँ आज ...
Very beautiful.I can feel the emotions coming out from the poem.
ReplyDeleteThanku so much for your kind words, Pranju! So glad that you liked it :)
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