एक रूह से निकली आवाज़ ...
एक अनकही तलाश ...
इस शहर में न जाने कितने रंग हैं ...
पर है हर जगह ये राही अनजाना ...
शब्दों से न बोले कुछ ...
न बोले ये कुछ आँखों से ...
दर्द कितना भी हो ...
पर दिखता नहीं ये जज्बातों से ...
है ये थोड़ा अजीब ...
रहता नहीं ये किसी के करीब ...
डरता है सबसे ये ...
पर कुछ कहता नहीं किसी से ये ...
अँधेरे की चादर ओढ़े हुए ...
जाने क्यूँ छुप रहा है ...
अपने अन्दर के गम को लिए ...
न जाने किस बात से घुट रहा है ...
रंगीन दुनिया के इस भवर में ...
एक अंजना सा मुसाफिर ...
न जाने क्यूँ घुट रहा है !!
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