Monday, 2 January 2012

सपनो की दुनिया में


बैठे थे हम किसी की राह में, 
अनजाने थे वो पत्ते जिनसे सामना हो गया... 
कुछ नम आँखों से सोच रहे थे मन में , 
पर अनजाने में एक रास्ता मिल गया ...
चलते-चलते कुछ दूर पे वो हमसे मिले, 
जिन्हें देखके ही दिल खुशनुमा बन गया ...
आँखों ही आँखों में बातें कुछ होने लगी, 
और दिल में एक कशिश सी जगी...
की उसके साए में आके हम कुछ ऐसे खो जाए, 
न खुद को समझ पाए न उसको भूल पाए ...
रात की चादर ओढ़े खढी थी चांदनी,
उसके चेहरे पे खिल रही थी चांदनी... 
देखते -देखते ही दिल ने दस्तक देके बोला
जिसकी याद में हो रहा था बेगाना अब वो मिल गयी है तो ढून्ढ  कोई नजराना... 
आँखों को बंद करके कुछ ऐसा सपना देखा हमने, 
अलार्म की घंटी बज गयी और जग गए प्यारे सपनो के ओझल मन में..:)

- सौम्य नगायच 

2 comments: