अब तन्हाई सी छाई है …
न जाने अब कौनसी घडी आई है ...
सोते है न जागते हैं …
वक़्त के पीछे सब भगते हैं …
अकेले चलने से मंजिल मिलती नहीं …
साथ होने से तन्हाई ढलती नहीं …
न जाने मन क्यूँ परेशान है …
न जाने क्यूँ ये इतना हैरान है …
सब दिमाग का खेल है लगता है …
फिर भी दिल पे जोर कहाँ है …
नसीब का खेल ये बड़ा है …
न जाने ये सामने कौनसा अनजान रास्ता पड़ा है …
अब हलके से शोर से भी डर लगता है …
न जाने कौनसा शैतान मन में बस्ता है …
न जाने कौनसा शैतान मन में बस्ता है ….
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