कुछ कहना ही था तो कह देते ...
जब सहना ही था तो सह लेते ....पर इन यादों का क्या करे ....
जब इनको नहीं था भुलाना ....
दूरी तो होनी ही थी ...
पास आ पाना तो दुश्वार था ही ...
पर फिर भी इन आँखों में ....
उनके आने का इंतज़ार था ही ....
समझ न पाए अपने ही ...
न अजनबियों को समझा पाए ....
रहते रहते अपने मन को भी न समझा पाए ....
चाहते तो क्या नहीं कर लेते ...
पर अपने ही आप में खोके रह गए ...!! रह गए ....!!
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