ज़र्रे ज़र्रे से निकलके मोती बना था वो सपना..
आँखों के ओझल मनं में कुछ अनकहा सा सपना..
दस्तक देके कुछ न मिला था न कुछ पाया था ..
अँधेरी उन गलियों के मनं में , अजब सा सपना आया था ..
दूर जा रहे थे वो हमसे ..
न शिकवे न गिला किये जनम से ..
होती थी वो चंद लम्हों की परछाइयाँ ..
दे जाती थी वो जन्मो जन्मो की रुस्वाइयाँ ..
कहती थी मनं में हमेशा ..
रोती थी मनं में हमेशा ..
सपनो के उस शहर में कुछ ऐसी थी वो कहानियां ..
जिन्हें ढूँढती थी मेरी वो तन्हाईयाँ ...
2BC3798E9C
ReplyDeletehacker bul
hacker kirala
tütün dünyası
hacker bul
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